मशरूम की खेती कैसे करें | Mashroom Farming in Hindi

मशरूम जिसे खुम्भ, खुम्भी, भमोड़ी और गुच्छी जैसे न जाने किन-किन नामो से जाना जाता है.   

आज मशरूम फार्मिंग एक ऐसा बिजनेस बन गया है जो कमाई का बेहतरीन जरिया साबित हो रहा है.  

आपको बता दें कि इस बिजनेस को शुरू करने के लिए बहुत ही कम जगह और लागत की जरूरत होती है. साथ में प्रॉफिट कमाने के लिए ज्यादा इंतजार भी नहीं करना पड़ता है क्योकि इसके फसल जल्दी तैयार हो जाते हैं.  

इसलिए पिछले कुछ सालों से किसानों के बीच मशरूम फार्मिंग को लेकर काफी इंटरेस्ट देखा जा रहा है. 

वैसे तो मशरूम फार्मिंग हजारों साल पहले से किया जा रहा है लेकिन अगर अपने इंडिया में इसके प्रोडक्शन की बात करें तो यह पिछले 3 दशकों से ही शुरू हुआ है. 

आज के समय पर हिमाचल प्रदेश ,उत्तराखंड ,पंजाब, हरियाणा ,उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना ये कुछ ऐसे राज्य है जो व्यापारी स्तर पर मशरूम फार्मिंग करते हैं.

आपको बता दें कि साल 2019-20 में मशरूम फार्मिंग का प्रोडक्शन 1.30 लाख टन का था. 

अगर मशरूम के उपयोग की बात करें तो खाने के अलावा इसका इस्तेमाल मेडिसिन बनाने में भी किया जाता है. 

क्योकि इसमें हाई लेवल के प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट ,साल्ट और विटामिंस मौजूद होते हैं इसलिए मशरूम की अहमियत और भी बढ़ जाती है. 

मशरूम के पाउडर का इस्तेमाल जिम में एक्सरसाइज करने वाले लोगो के लिए सप्लीमेंट्री पाउडर बनाने ,अचार बनाने, बिस्कुट , टोस्ट, नूडल्स, सॉस,ब्रेड, चिप्स आदि बनाने में किया जाता है

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इंडिया में उगाई जाने वाली मशरूम के प्रकार

आपको बता दें कि पूरी दुनिया में 10,000 टाइप के खाने लायक मशरूम पाए जाते हैं लेकिन इनमें से सिर्फ 70 प्रकार के मशरूम की खेती की जा सकती है.

अगर अपने इंडिया की बात करें तो यहां के मौसम के अनुसार केवल 5 तरह के मशरूम की खेती की जाती है जिनके नाम इस तरह से हैं-

  • सफेद बटन मशरूम 
  • ढींगरी मशरूम
  • दूधिया मशरूम
  • पैडीस्ट्रॉ मशरूम
  • शिताके मशरूम

आगे इन पांचों मशरूम के बारे में डिटेल में जानकारी दी जा रही है- 

1. सफेद बटन मशरूम 

पहले के टाइम पर हमारे इंडिया में सफेद बटन मशरूम की खेती लो टेंपरेचर वाले इलाकों में ही किया जाता है था लेकिन नई टेक्नोलॉजी आने के कारण अब अन्य जगहों पर भी इसकी खेती की जाती है.

सरकार भी इस मशरूम की खेती के लिए लोगों को प्रोत्साहन दे रही है.

आपको बता दें कि S-11, TM-79 and Horst U-3 सफेद बटन मशरूम की खेती सबसे ज्यादा की जाती है. 

बटन मशरूम की कवक को जाल बनाने के लिए 22 से 26 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की जरूरत होती है. 

इस तापमान पर कवक जाल बहुत ही जल्दी से फैलते हैं. इसके बाद 14 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान मशरूम की खेती के लिए उपयुक्त होता है. 

मशरूम की खेती करने के लिए आप रूम, शेड या झोपड़ी का सहारा ले सकते हैं. 

2. ढींगरी मशरूम

आपको बता दें कि ढींगरी मशरूम की फार्मिंग साल भर की जा सकती है. इस मशरूम की खेती करने के लिए 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान और 70 से 90 परसेंट नमी की जरूरत होती है. 

ढींगरी मशरूम की खेती करने के लिए चावल,गेहूं और अनाज के दानों को उपयोग में लाया जाता है.  

यह मशरूम आमतौर पर 2.5 से 3 महीने के बीच काटने के लिए तैयार हो जाता हैं. इस मशरूम की खेती हमारे इंडिया के सभी भागों में की जाती है. 

आपको बता दें कि यह मशरूम अलग-अलग प्रकार के होते हैं जिससे हर मशरूम की फार्मिंग के लिए अलग-अलग तापमान की जरूरत होती है. इसलिए इस मशरूम को साल भर उगाया जा सकता है. 

अगर इस मशरूम की फार्मिंग करने पर आने वाले कॉस्ट की बात करें तो 10 क्विंटल मशरूम की फार्मिंग करने के लिए करीबन 50,000 रु. का लागत आता है. 

इसकी खेती करने के लिए 100 स्क्वायर फीट के रूम में रैक बनाने की जरूरत होती है. 

अगर इस मशरूम के बाजार भाव की बात करें तो यह है ₹120 प्रति Kg.से 1,000 प्रति Kg.तक होता है जो कि इस मशरूम के अलग-अलग प्रकार पर निर्भर करता है.

इसके अलावा मशरूम का प्राइस उनके क्वालिटी पर भी डिपेंड करेगा. 

3. दूधिया मशरूम 

दूधिया मशरूम को हमारे यहां ग्रीष्मकालीन मशरूम के नाम से भी जाना जाता है. यह मशरूम साइज में बड़ा और देखने में आकर्षक होता है.

दरअसल यह पैडीस्ट्रॉ मशरूम के जैसा ही एक उष्णकटिबंधीय मशरूम है. इस मशरूम की सबसे पहले कृत्रिम रूप से खेती साल 1976 में वेस्ट बंगाल में की गई थी. 

आज के टाइम पर यह मशरूम कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में बहुत ही पॉपुलर हो चुका है.

अगर आप इस मशरूम की खेती करना चाहते हैं तो उड़ीसा सहित ऊपर बताए गए राज्यों में दूधिया मशरूम की खेती करने के लिए मार्च से अक्टूबर का समय बेहतरीन होता है. 

4. पैडीस्ट्रॉ मशरूम 

इस मशरूम को लोग-बाग “गरम मशरूम” के नाम से भी जानते है क्योंकि यह हाई टेंपरेचर पर बहुत ही जल्दी से तैयार हो जाता है. 

अगर सभी कंडीशन सही रहती है तो इसके फसल 3 से 4 हफ्तों में तैयार हो जाते हैं. 

आपको बता दें कि इस मशरूम में स्वाद ,सुगंध के साथ-साथ ही प्रोटीन और विटामिन मिनरल जैसी चीजें भी अच्छी मात्रा में पाई जाती हैं. 

इसलिए इस मशरूम का डिमांड मार्केट में बहुत ही ज्यादा है और इसकी पॉपुलरटी सफेद बटन मशरूम से कम नहीं है.

अगर इस मशरूम के फार्मिंग की बात की जाए तो पैडीस्ट्रॉ मशरूम की खेती ओडिशा, वेस्ट बंगाल, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में की जाती है. 

इस मशरूम की खेती करने के लिए 28-35 डिग्री सेल्सियस तापमान और 60 से 70 फ़ीसदी नमी का होना जरूरी होता है. 

5. शिताके मशरूम 

इस मशरूम को “जापानी मशरूम” के नाम से भी जानते हैं यह मशरूम खाने के लिए बहुत ही अच्छा होता है. साथ में मेडिकल क्षेत्र में भी इसकी काफी उपयोगिता है.

इस मशरूम को पर्सनल यूज के लिए या फिर बिजनेस करने के लिए व्यापारिक स्तर पर आसानी से उगाया जा सकता है. 

टोटल मशरूम प्रोडक्शन के मामले में यह मशरूम दुनिया भर में दूसरे नंबर पर आता है. 

अगर इस मशरूम की तुलना सफेद बटन मशरूम से करें तो यह अपने बनावट और स्वाद के मामले में बहुत ही Best मशरूम है. 

यह मशरुम हाई क्वालिटी प्रोटीन और विटामिन का भंडार है. इस मशरूम में फैट और शुगर की मात्रा नहीं होती है. इसलिए यह उन लोगों के लिए भी अच्छा है जो डायबिटीज या हार्ट के मरीज हैं.

इस मशरूम को बड़ी आसानी से सागौन , साल और किन्नू के पेड़ की भूसी में उगाया जा सकता है. 

सफेद बटन मशरूम प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी 

अगर आप सफेद बटन मशरूम की खेती करना चाहते हैं तो इसके लिए अक्टूबर से लेकर मार्च तक का महीना सही समय होता है. इस दौरान आप दो बार इस मशरूम की खेती कर सकते हैं. 

सफेद बटन मशरूम की खेती करने के लिए अगर अनुकूल तापमान की बात करें तो यह 15 से 22 डिग्री सेंटीग्रेड के आसपास होना चाहिए , वही नमी 80 से 90 फ़ीसदी होना चाहिए. 

मशरूम खेती करने के लिए शेड बनाने का तरीका 

सफेद बटन मशरूम की फार्मिंग करने के लिए आप परमानेंट और टेंपररी दोनों में से किसी भी तरह के शेड का इस्तेमाल कर सकते हैं. 

अगर आपके पास पूंजी की कमी है तो आप टेंपरेरी शेड या बांस और धान के पराली से झोपड़ीनुमा शेड बना सकते हैं. 

शेड बनाने के लिए आने वाली लागत की बात करें तो यह उसके साइज पर डिपेंड करेगा. अगर आप बांस और धान के पराली से 30 Χ22 Χ12 (length Χwidth Χheight) फीट के साइज में शेड बनाते हैं तो इसके लिए आपको करीबन 30,000 रु. का लागत आएगा. 

इस साइज में आप 4 X 25 फीट का 12 से 16 स्लैब बनाकर मशरूम की खेती कर सकते हैं.

कैसे बनाएं खाद

सफेद बटन मशरूम की फार्मिंग करने के लिए खाद दो तरीके से बनाए जा सकते हैं. 

आपको बता दें कि पहले तरीके (शॉर्ट टाइम मेथड) से खाद बनाने के लिए कम समय लगता है और दूसरे तरीके ( लॉन्ग टाइम मेथड) से खाद बनाने के लिए ज्यादा समय लगता है. 

आइए आपको दोनों तरीके के बारे में डिटेल में जानकारी देते हैं-

शॉर्ट टाइम मेथड

शार्ट टाइम मेथड से खाद यानी कम्पोस्ट बनाने का यह तरीका बड़े-बड़े मशरूम फॉर्म में इस्तेमाल किया जाता है. 

इस मेथड में 10 दिन के बाद खाद के मिक्सचर को एक खास तरह के रूम में यह जाता है जिसे स्टेरलाइजेशन चेंबर या टनल कहते हैं

इस स्टेरलाइजेशन चेंबर का फर्श जालीदार बना होता है जिसके नीचे लगे पंखे से होकर हवा बहती है. यह हवा पूरी खाद से होकर ऊपर की तरफ निकल जाता है. इसी तरह यह हवा लगातार 6 से 7 दिन तक बहता रहता है.

इस तरीके से बनाए गए खाद की उत्पादन क्षमता लोंग टाइम मेथड से बनने वाले खाद की तुलना में दुगनी होती है. 

ज्यादातर लोगों के पास चेंबर की सुविधा नहीं होती इसलिए शॉर्ट टाइम मेथड से खाद बनाने की तकनीक सभी लोग यूज़ नहीं कर पाते हैं. 

जो लोग छोटे लेवल पर मशरूम फार्मिंग का बिजनेस करते हैं वे लॉन्ग टाइम मेथड से खाद बनाने के तरीके को अपनाते हैं. 

लॉन्ग टाइम मेथड से खाद बनाने का प्रोसेस 3 स्टेप्स में पूरा होता है , जो कुछ इस तरह से हैं-  

लॉन्ग टाइम मेथड 

मशरूम फार्मिंग के लिए इस तरीके से खाद बनाने के लिए अच्छी क्वालिटी के भूसे के जरूरत होती है जो गीला ना हो. 

इस तरीके से खाद बनाने के लिए चावल या गेहूं के भूसे की जगह सरसों के भूसे का इस्तेमाल भी किया जा सकता है लेकिन इसके साथ इसमें मुर्गे की खाद का इस्तेमाल करना जरूरी होता है. 

अगर आप ज्यादा खाद बनाना चाहते हैं तो इनकी मात्रा को बढ़ा सकते हैं.

अगर किसी वजह से आपको खेत का खाद (कैलशियम अमोनियम नाइट्रेट) नहीं मिलता है तो आप इसमें यूरिया की मात्रा को उसी अनुपात में बढ़ा सकते हैं. लेकिन इसमें नाइट्रोजन की मात्रा 1.6-1.7 फ़ीसदी ही होना चाहिए. 

कंपोस्ट खाद बनाने के लिए वैज्ञानिकों के द्वारा यह तीन फार्मूला बनाए गए हैं- 

formula – 1 

  • चावल का भूसा – 300 Kg.
  • गेहूं की चोकर   – 30 Kg.
  • जिप्सम           – 30 Kg.
  • खाद (कैलशियम अमोनियम नाइट्रेट) – 9 Kg.
  • यूरिया             – 3.6 Kg.
  • पोटाश            – 3 Kg.
  • सिंगल सुपर फास्फेट – 3 Kg.
  • शीरा              – 5 किलो ग्राम

Formula – 2 

  • गेहूं का भूसा    – 300 Kg.
  • मुर्गी खाद        – 60 Kg.
  • गेहूं का छानस  – 7.5 Kg.
  • जिप्सम          – 30 Kg.
  • किसान खाद (कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट) 6 Kg., यूरिया -2 Kg.
  • पोटाश          – 2.9 Kg.
  • सिंगल सुपर फास्फेट – 2.9 Kg.
  • शीरा            – 5 Kg.

Formula- 3 

  • सरसों का भूसा – 300 Kg.
  • मुर्गी खाद       – 60 Kg.
  • गेहूं का छानस – 8 Kg.
  • जिप्सम         – 20 Kg.
  • यूरिया          – 4 Kg.
  • सुपर फास्फेट – 2 Kg.तांगली
  • शीरा            – 5 Kg.

कंपोस्ट खाद बनाने की समय सूची 

सबसे पहले भूसे को पक्के फर्श या किसी साफ-सुथरी जगह पर एक feet मोटी परत बनाकर फैला दिया जाता है.  

फिर इसके बाद 2 दिन तक पानी डालकर इसे अच्छी तरह गीला किया जाता है. 

भूसे पर पानी डालने के साथ साथ है जेली (तांगली) के द्वारा इसे पलटते हैं इतना करने के बाद आगे बताए अनुसार कंपोस्ट खाद बनाया जाता है- 

0 दिन

सबसे पहले दिन गीले भूसे को 1 फीट मोटी परत में फैलाकर 6 Kg.खेत का खाद, 15 Kg.गेहूं का चोकर,  3 Kg.सुपरफास्ट पेंट, 3 Kg.यूनिट ऑफ पोटाश और 2.4 Kg.यूरिया जैसे केमिकल फर्टिलाइजर अच्छी तरह मिलाएं.

इतना करने के बाद 5 फीट ऊंचा 5 फीट चौड़ा और सुविधा के अनुसार लंबाई में भूसे का ढेर बनाएं.

ढेर का तापमान 24 घंटे के अंदर बढ़ने लगेगा. इस ढेर के मध्य भाग में तापमान 70 से 80 डिग्री सेल्सियस और इसके किनारों पर 50 डिग्री सेल्सियस रहेगा. 

6वां दिन

पहले दिन आपने जो ढेर बनाया था उसका बाहरी भाग हवा में खुले होने की वजह से सूख जाता है.  ऐसा होने पर आपका खाद अच्छी तरह से नहीं सड़ पाता इसलिए इसकी पलटाई की जाती है.

पलटाई करते समय आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि इसके अंदर का भाग बाहर और बाहर का भाग अंदर आ जाए. 

बाहर के सूखे भाग पर पानी का छिड़काव करना ना भूलें. साथ में पलटाई करते समय 3 Kg.खेत का खाद,1.2 Kg.यूरिया और 15 Kg. चोकर मिलाने के बाद इस ढ़ेर को फिर से 0 दिन के जैसा बना दे. 

10वां दिन

छठवें दिन पलटाई करने के बाद अब आपको 10 वां दिन फिर से पलटाई करना होगा.  इसके लिए आप खाद के ढेर में से 1 फीट भाग को निकालकर इस पर पानी का सिंचाई करें और पलटाई करते वक्त ढेर के बीचो बीच डाल दे. 

दूसरी पलटाई करते समय आपको इसमें 5 Kg. शीरा 10 लीटर पानी में घोलकर पूरे खाद में अच्छी तरह से मिलाकर पहले की तरह फिर से ढेर बना देना है. 

13वां दिन

दूसरी पलटाई हो जाने के बाद खाद की अगली पलटाई 13वे दिन में की जाती है. 

इस पलटाई को करने के लिए पिछली बार की तरह खाद के बाहरी सूखे भाग पर पानी का छिड़काव जरूर करें. 

इस बार आपको पलटाई करते समय 30 Kg.जिप्सम मिलाना है फिर उसी तरह से ढेर बना कर रख देना है.

16वां दिन

खाद की अगली पलटाई 16 दिन में की जाती है और फिर से पहले की तरह ढेर बना कर रख दिया जाता है. इस बार नमी की उचित मात्रा पर ध्यान दिया जाता है. 

19वां दिन (5वीं पलटाई), 22वां दिन (6वीं पलटाई) एवं 25वां दिन (7वीं पलटाई)

5वीं, 6वीं और 7वीं पलटाई क्रमशः 19वां दिन  22वां दिन 25वां दिन किया जाता है. इन दिनों पलटाई करते समय पिछली बार के ही तरह नमी पर विशेष ध्यान दिया जाता है.

28वां दिन

28वां दिन अमोनिया तथा नमी की उपस्थिति चेक करने के लिए खाद का परीक्षण किया जाता है. अगर इस खाद में अमोनिया गैस की दुर्गंध नहीं आती है और नमी की मात्रा भी सही पाया जाता है तो इस खाद को मशरूम फार्मिंग के लिए एकदम अच्छा माना जाता है. 

इस खाद में मशरूम के बीज बोने से पहले बोन से पहले इसे खोलकर ठंडा होने दिया जाता है. 

अगर किसी वजह से इस खाद में अमोनिया गैस की बदबू आती है तो हर तीसरे दिन पलटाई करना सही होता है. 

आपको बता दें कि मुर्गी की बीट वाली खाद में अमोनिया गैस रहने की आशंका होती है. 

अमोनिया गैस मशरूम के कवक जाल अथवा बीज के लिए नुकसानदेह होते हैं

मशरूम फार्मिंग के लिए जब खाद बनकर रेडी हो जाए तो थोड़ी सी खाद को मुट्ठी में दबा कर देख लेना चाहिए की इसमें पर्याप्त मात्रा में नमी है या नहीं. 

खाद को मुठ्ठी से दबाने पर अगर पानी की बूंदे अंगुलियों के बीच से बनकर आती हैं तो समझ जाना चाहिए कि खाद में नमी की पर्याप्त मात्रा है. 

वहीं अगर खाद को अंगुलियों से दबाने पर ज्यादा पानी बहकर आता है तो ऐसी स्थिति में समझ जाना चाहिए की आवश्यकता से अधिक पानी की मात्रा है ऐसे में खाद को खोल कर थोड़ी हवा लगने देनी चाहिए. 

यह पहचान होती है अच्छे मशरूम खाद की 

जब आपका खाद बनकर तैयार हो जाए तो इन बातों के आधार पर आप पहचान कर सकते हैं कि आपका खाद पर्फेक्ट है या नहीं-

  • अच्छी खाद गहरे भूरे रंग की दिखाई देती है
  • अगर अच्छी खाद बनानें में नमी की बात की जाए तो यह है 60 से 65 परसेंट तक होता है. 
  • तैयार किए गए खाद में नाइट्रोजन की मात्रा1.75-2.25% होना चाहिए
  • खाद में कहीं पर भी अमोनिया गैस की बदबू नहीं होना चाहिए आपका खाने की और रोगाणु से मुक्त होना चाहिए
  • खाद का pH मान 7.2-7.8 के बीच होना चाहिए

कहां से लें मशरूम का बीज

अच्छे किस्म का बीज प्राप्त करने के लिए आप इन अनुसंधान से संपर्क कर सकते हैं-

  • खुम्ब अनुसंधान निदेशालय, सोलन, हिमाचल प्रदेश, 
  • पादप रोग विज्ञान विभाग, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (हरियाणा), 
  • डॉ यशवंत सिंह परमार बागवानी व वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन (हिमाचल प्रदेश)
  • विज्ञान समिति, उदयपुर (राजस्थान), 
  • क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला, सीएसआईआर, श्रीनगर (जम्मू एवं कश्मीर), 
  • बागवानी निदेशालय, मशरूम स्पॉन प्रयोगशाला, कोहिमा, कृषि विभाग, मणिपुर, इम्फाल, सरकारी स्पॉन उत्पादन प्रयोगशाला, बागवानी परिसर, चाउनी कलां, होशियारपुर (पंजाब), 
  • कृषि विभाग, लालमंडी, श्रीनगर (जम्मू एवं कश्मीर), 
  • पादप रोग विज्ञान विभाग, असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहट (असम)
  • पादप रोग विज्ञान विभाग, जवाहर लाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर (मध्य प्रदेश), 
  • हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय स्पॉन प्रयोगशाला, पालमपुर (हिमाचल प्रदेश)
  • क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान केन्द्र, धौलाकुआं (हिमाचल प्रदेश), 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इन सरकारी स्पॉन (मशरूम बीज) उत्पादन केन्द्रों के अतिरिक्त बहुत से निजी व्यक्ति भी मशरूम बीज Production से जुड़े हैं जो कुरूक्षेत्र (हरियाणा), दिल्ली, पटना (बिहार), सोलन, हिसार, सोनीपत, मुम्बई (महाराष्ट्र) इत्यादि जगहों पर स्थित हैं।

इसके अलावा आप Amazon या Flipkart जैसे प्लेटफॉर्म से ऑनलाइन भी मशरूम के बीज की ख़रीदकारी कर सकते हैं.  

कैसे करें मशरूम के बीज की बुवाई 

मशरूम के बीज की बुवाई करने के लिए बनाई गई शेड में स्लैब पर पॉलीथीन शीट रखने के बाद 6-8 इंच मोटी कम्पोस्ट खाद की परत बिछा दी जाती है. 

इतना करने के बाद इस खाद के ऊपर मशरूम के बीज को मिला दिया जाता है. 

आपको बता दे कि 100 Kg कम्पोस्ट खाद में 500-750 ग्राम मशरूम के बीज बोना सही मात्रा होता है. 

बीज को बो देने के बाद खाद को पॉलीथीन शीट से ढक देना चाहिए. 

बीज खरीदने से पहले इन चीजो की सावधानी बरते 

अगर मशरूम के बीज का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस या इससे ज्यादा होता है तो ये 2 दिन के भीतर मर जाते हैं और इनसे सड़न की बदबू भी आने लगती है. 

अगर आप गर्मियों के दिन में इसका बीज खरीदने जा रहे हैं तो उसके लिए की रात्रि में ही बीज को लेकर आए.

अगर हो सके तो थर्माकोल से बनी डिब्बे में बीज की बोतलों अथवा लिफाफा के साथ बर्फ के टुकड़ों को रखकर एक जगह से दूसरी लेकर आए. 

अगर आप एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए वातानुकूल गाड़ियों का इस्तेमाल करते हैं तो ज्यादा टेंपरेचर से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है. 

सीड स्टोरेज (बीज भंडारण)

मशरूम के साफ-सुथरी और शुद्ध बीज खाद में जल्दी-जल्दी बढ़ते हैं और इससे पैदावार में भी बढ़ोतरी होती है. 

अगर किसी वजह से मशरूम के बीज को स्टोर करके रखने की जरूरत पड़ती है तो आप 15 से 20 दिन के लिए रेफ्रिजरेटर में स्टोर करके रख सकते हैं और बीज को खराब होने से बचा सकते हैं

केसिंग मिक्स

आपको बता दें कि कोई भी ऐसा मटेरियल जो पानी को जल्दी से अवशोषित कर ले लेकिन पानी को धीरे-धीरे रिलीज करें उसे केसिंग अच्छा माना जाता है . 

केसिंग से मशरूम की वानस्पतिक वृद्धि में मदद मिलती है.

साथ ही केसिंग करने के बाद खाद में नमी की उचित मात्रा बनी रहती हैं. 

अगर किसी वजह से केसिंग नहीं किया जाता है तो उत्पादन पर इसका असर देखने को मिलता और बहुत ही कम मात्रा में प्रोडक्शन होता है जिससे इस बिजनेस में नुकसान होने की संभावना ज्यादा होती है. 

आपको बता दें कि चावल के छिलके की राख और जोहड़ की मिट्टी को लेकर 1ः1 वजन के अनुपात में बनाया गया मिश्रण  हाई क्वालिटी का केसिंग होता है। 

इस केसिंग मिश्रण में कुछ जीवाणु हो सकते हैं इसलिए इसका निर्जीवीकरण किया जाना जरूरी है . इसके के लिए केसिंग मिश्रण को 2-3 प्रतिशत फॉर्मलीन के घोल से तर करके पॉलिथीन सीट से 3-4 दिन के लिए ढक देना चाहिए. 

इतना कर लेने के बाद केसिंग मिश्रण से पॉलिथीन सीट को हटाकर इसे पलट देना चाहिए, ताकि फॉर्मलीन की गंध बाहर निकाल जाए. 

जब खाद के ऊपर स्पॉन का कवक जाल अच्छी तरह से उग  जाए तो उसके ऊपर केसिंग की 1.0 से 1.5 इंच मोटी परत बिछाई जाती है. 

हवा देना है जरूरी

कम्पोस्ट खाद में कवक जाल फैलने के दौरान 1 या 2 बार शुद्ध हवा का देना जरूरी होता है.  साथ मे इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि कार्बनडाईऑक्साइड (CO2) की मात्रा 2 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.   

पिन हेड बनने के लिए कार्बनडाईऑक्साइड की मात्रा 0.08 प्रतिशत से ज्यादा न हो तथा मशरुम निकलते समय इसकी मात्रा 0.08-0.1 प्रतिशत से अधिक नही होनी चाहिए। 

कहने का मतलब यह है कि पिन बनने के समय तथा बाद में हवा का संचालन अच्छी तरह से होना चाहिए.  

सफेद बटन मशरुम की खेती करने के लिए अच्छे खाद के अलावा फसल का सही से देखरेख किया जाए तो आसानी से अच्छी गुणवत्ता वाला मशरूम प्राप्त किए जा सकते हैं.  

कटाई

केसिंग की परत चढ़ाने के लगभग 12 से 15 दिन के बाद कम्पोस्ट खाद के ऊपर मशरुम की छोटी-छोटी कलिकाऐं दिखाई देने लगती हैं जो 4-5 दिन में बढ़कर छोटी-छोटी सफेद बटन मशरुम में बदल जाती हैं। 

जब इन सफेद बटन मशरुमों का साइज 4-5 सेंटीमीटर का हो जाए तो इन्हें हार्वेस्टिंग के लिए तैयार समझकर घुमाकर तोड़ लेना चाहिए. 

तुड़ाई के बाद सफेद बटन मशरुम को जल्दी से इस्तेमाल कर लेना चाहिए क्योंकि यह जल्दी ही खराब होने लगती है। 

अगर पैदावार की बात करें तो 10.00 Kg. सूखे भूसे से बनाए गए कम्पोस्ट खाद से करीबन 5.00 Kg. सफेद बटन मशरुम प्राप्त किया जा सकता है.  

ट्रेनिंग

इस बिजनेस को शुरू करने के लिए अगर आपके पास प्रॉपर नॉलेज नहीं है तो आप किसी अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से मशरूम फार्मिंग की ट्रेनिंग ले सकते हैं. 

तो इस तरह से आप मशरूम फार्मिंग शुरू कर सकते हैं. उम्मीद करते हैं अब आपको मशरूम की खेती कैसे करें? से जुड़े पूरी जानकारी मिल गई होगी. 

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